१. हुतात्मा नाथूराम का विचार था कि गांधी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी। कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे। नाथूराम गोड़से को भय था गांधी जी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे।

२. 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ आक्रोश उफ़ान पे था। भारतीय जनता इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी के पास गयी लेकिन गांधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया।
३. गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया। गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे। वो केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के 1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध तक नहीं कर सके।
४. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी ने अपने प्रिय सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे। गांधी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया।
५. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी। पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को टालने के लिए गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया।
६. गांधी कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह से कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए। अतएव राजा हरि सिंह को शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने, जबकि हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था। गांधी की नीतियाँ धर्म के साथ, बदलती रहती थी। उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का कार्य किया। गांधी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता।
७. पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली। मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
८. गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया। लेकिन गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके।
९. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय प्राप्त हुयी किन्तु गांधी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया। गांधी जी अपनी मांग को मनवाने के लिए अनशन धरना रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थे। इसके लिए वो नीति अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे।
१०. 14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, लेकिन गांधी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि गांधी ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी ने कुछ नहीं किया।
११. धर्म निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता गाँधी ही थे। जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी + उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे। बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ।
१२. कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने पर गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया।
१३. गांधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथ भ्रष्ट देशभक्त कहा। वही दूसरी ओर गांधी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे आजम कहकर पुकारते थे।
१४. कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
१५. जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
१६. भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया। जिसका गांधी ने विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान दे दी।
गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे, फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या नाजायज। गांधी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की।
उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम गोड़से ने गांधी की हत्या को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया। नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की। मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के, एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ। गांधी की हत्या के सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था।
लेकिन शायद नाथुराम गोडसे ये नहीं जानते थे कि गांधी एक मुर्ख देशभक्त नहीं बल्कि अंगेजो का ही एजेंट और महा पाखण्डी था।
आज भी श्री नाथूराम गोडसे जी की अस्थि कलश में रखा हुआ मोक्ष प्राप्ति का इंतजार कर रहा हैं। उनका आखरी लाइन थी अस्थि विसर्जन तब करना जब खंड खंड भारत पुनः अखंड भारत का सौभाग्य प्राप्त हो।
हुतात्मा नाथूराम गोडसे को कोटिशः नमन
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