सामान्य रूप से, तथा गिनेस बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अनुसार 1927 से चल रहा पिच ड्रॉप एक्सपेरीमेंट नाम से जाना जाने वाला प्रयोग ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के प्रथम प्रोफेसर भौतिकविद थॉमस पार्नेल (first Professor of Physics at the University of Queensland, Professor Thomas Parnell; 1888–1948) ने आरम्भ किया था।
उन्होंने पिच ड्रॉप प्रयोग के लिए पिच नामक एक अत्यधिक श्यान (चिपचिपे) कोलतार जैसे पदार्थ का उपयोग किया। यह पानी से ढाई खरब (2,50,00,00,00,000

[1] ; इस प्रयोग के अनुसार 1930–1984 का माध्यम मान) गुना अधिक श्यानता वाला है; यह मधु (शहद) से बीस लाख गुना अधिक श्यान है। हथौड़े से मारने पर यह काँच की भाँति टूट कर बिखर जाने वाला ठोस होने का आभास देता यह विचित्र पदार्थ वास्तव में अत्यधिक गाढ़ा द्रव है।
इस गाढ़े कोलतार को “पिघलाकर” एक मुँहबन्द कीप में डालकर इसे वर्ष 1927 से 1930 तक तीन वर्ष जमने का अवसर दिया गया। फिर, कीप का मुख खोलकर इस कोलतार को टपकाने का मार्ग दिया गया। दिसम्बर 1938 में पहली बून्द टपकने के उपरान्त, फरवरी 1947, अप्रैल 1954, मई 1962, अगस्त 1970, अप्रैल 1979, जुलाई 1988 को पहली सात बून्दें टपकीं। नवम्बर 2000 में आठवीं बून्द गिरने में बारह वर्ष लगे। फिर 24 अप्रैल 2014 को नवीं बून्द के गिरने को भलीभाँति देख पाने के लिए कीप के नीचे रखें पात्र को हटाकर दूसरा पात्र रखते समय इस प्रयोग की निगरानी करने वाले प्रोफेसर व्हाइट की सावधानी के उपरान्त भी अपेक्षाकृत बड़ी नवीं बून्द टूट कर गिर गई। इस प्रयोग की दसवीं बून्द सम्भवतः 2026 में टपकने वाली है। किसी भी बून्द को किसी भी व्यक्ति ने गिरते हुए अवलोकन नहीं किया है।
प्रोफेसर पार्नेल के निधन के उपरान्त प्रोफेसर जॉन मेनस्टोन (Professor John Mainstone) ने 1948 से 2013 तक इस प्रयोग की देखरेख की। इनकी मृत्यु के उपरान्त से प्रोफेसर एण्ड्र्यू व्हाइट (Professor Andrew White) इस प्रयोग की देखरेख कर रहे हैं।
यह प्रयोग इतना अर्थहीन माना गया कि 2005 में इसके शोधकर्ताओं प्रोफेसर पार्नेल तथा प्रोफेसर मेनस्टोन इग्नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया है।