मेरी बाइक से एकदम लग के एक बाइक थी जिसपर एक पति–पत्नी सवार थे, पत्नी की गोद में कुछ महीने का बालक था।

नन्हे से शिशु को बरोबर ठंड की टोपी और स्वेटर मोजे पहनाए हुए थे और उसकी माता ने बालक की कमर में एक हाथ डालकर किसी सीट बेल्ट की तरह से उसे पकड़ रखा था।

इतने में सिग्नल ग्रीन हुआ, हम सभी की गाड़ी आगे बढ़ने लगी….

हॉर्न की कर्कश ध्वनियां, अगल बगल से ओवरटेक करने की कोशिश करती हुई कार और दो पहिया गाड़ियां और हिचकोले खाती उस बाइक पर वो नन्हा सा शिशु बड़े मजे से सोया हुआ था।

मेरा ध्यान अब भी उस नन्हे से बालक पर था!

इतने सब शोर शराबे में, गाड़ी के झटकों में, और हलचल में वो बच्चा जरा सा भी विचलित नहीं हो रहा था, ऐसी चैन की नींद में सोया था जिसके लिए आज आप और मेरे जैसे बड़े लोग तरसते है।

इस नन्हे से बालक की नींद के पीछे एक सरल सा मनोविज्ञान छुपा है..

वो ये की उसको भरोसा था उसकी मां पर! सौ प्रतिशत विश्वास!

इतना की नन्हे से बालक का जीवन गोद में बैठा कर हाथ से पकड़ने वाली उसकी मां के हवाले था और फिर भी वो निश्चिंत था।

मेरी मां मुझे कुछ होने ही नही देगी! उनके रहते मेरा बाल भी बांका नहीं हो सकता!

बस यही भरोसा उसे इतनी भीड़भाड़ में इतने शोर में चैन की नींद सुला रहा था।

मैने सोचा की इस नासमझ बच्चे के भरोसे का अगर 0.1% मुझमें ईश्वर के प्रति आ जाए तो फिर मेरे जीवन में क्या असाध्य है भला!

अगर इस नन्हे बालक जैसा भरोसा रहे तो मेरे जीवन में क्या बदलाव आयेंगे इसपर मैंने ध्यान दिया और कुछ क्षण के लिए ये अनुभव किया:

मेरे जीवन के धन संबंधित सारे अनावश्यक तनाव दूर है क्योंकि वो अन्नपूर्णा मां जो आज तक खिला रही है वो ही आगे भी भोजन का प्रबंध तो करेंगी ही करेंगी अपने बालक के लिए।

मेरे जीवन के शत्रु बाधा/संकट/विघ्न संबंधित सारे तनाव दूर है क्योंकि जिस मां लक्ष्मी ने गर्भ में पालन किया और रक्षा की, फिर शिशु अवस्था में रक्षा की और चलने बोलने समझने तक रक्षा करती रही वे आगे भी हर संकट से रक्षा करेंगी ही करेंगी।

मेरे जीवन के सारे रोग/शोक/भय से जुड़े तनाव दूर है क्योंकि जो मां भवानी ने आज तक प्राणों की रक्षा विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में की है वे ही आगे भी अपने बालक की सदैव सभी स्थितियों में रक्षा अवश्य करेंगी ही करेंगी।

मित्रों ये अनुभव थोड़े ही क्षणों के लिए था क्योंकि हम सांसारिक और कलियुगी बुद्धि के जीव है, मन पर से परत दर परत चढ़ी धूल को हटा के एक नन्हे बालक समान पूरा विश्वास प्राप्त करना बहुत दुर्लभ भी है और पर्याप्त साधना के द्वारा ही सम्भव है।

पर अगर उस सर्वशक्तिमान के प्रति किसी नन्हे बालक जैसा विश्वास हम लोगों में आ जाए तो जीवन का प्रत्येक क्षण आनन्द से ओत प्रोत हो जाए! हो जाए की नही?

जैसे वो नन्हा सा बालक प्रह्लाद जिसको भरोसा था की मेरे नारायण तो मुझे पहाड़ से नीचे गिरा दिए जाने पर अपनी गोद में ले लेंगे, वो तलवार के वार होने पर मेरे लिए कवच बन जायेंगे, वो हाथी के द्वारा रौंदे जाने पर मेरे लिए चट्टान बन जायेंगे और

वो जलती हुई होलिका में धधक धधक के जलने पर मेरे लिए बर्फ बन जायेंगे!

कल हमने इन्ही नन्हे भक्त राज प्रह्लाद की लीला का स्मरण करते हुए होली का रंग भरा त्यौहार मनाया।

तो ये भरोसा! ये विश्वास! अगर किसी नन्हे बालक से सीख लिया जाए और जीवन में परमात्मा के साथ इस विश्वास के नाते को जोड़ दिया जाए फिर क्या असम्भव कार्य है जो आपसे होना सम्भव ना हो!

सोच कर देखेंगे तो अद्भुत अनुभूति होगी।

पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद |

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