AAJ KI UTHAPATAK

40 के दशक में हंगरी के अंदर कैरोली टेकेक्स नामक एक निशानेबाज हुआ करता था.. वो राष्ट्रीय स्तर पर भी काफी फेमस भी हो चुका था , हर कोई सोचता था कि ये ओलंपिक में गोल्ड मेडल जरूर लेकर आएगा , लेकिन 1936 के ओलंपिक में जर्मनी के अंदर एक नियम लागू हुआ कि उनकी निशानेबाजी की खेल महासंघ ने यह घोषणा की कि केवल कमीशंड ऑफिसर ही निशानेबाजी के लिए क्वालीफाई करेगा , और वो खिलाड़ी सार्जेंट की पोस्ट पर था , तो इस तरह कैरोली को 1936 बर्लिन ओलंपिक में एलाऊ नहीं किया गया ,, उससे कहा गया कि ” आप सार्जेंट की पोस्ट पर हो तो आप हिस्सा नहीं ले सकते”

कैरोली का सपना था ओलंपिक , कैसे उसने दिन रात मेहनत किया था , और सोचा था कि एक दिन ओलंपिक में जरूर गोल्ड जीतूंगा ।

लेकिन वह घर आता है , और लेकिन निराश होकर नही ,, वह सोचता है चलो कोई बात नही 1940 के ओलंपिक में सपना पूरा करेगे ।

लेकिन दुर्भाग्य देखिए , ओलंपिक खत्म होने के कुछ ही दिन बाद हंगरी ने अपना नियम बदला की अब चाहे सार्जेंट हो या कमीशंड ऑफिसर हर कोई ओलंपिक में हिस्सा ले सकता है ।

सोच के देखिए आप लोग … कैसे कैरोली को किस्मत पटक कर जलील कर रही है ..

अच्छा फिर भी वो कहता है कोई नहीं 1940 में जीतेगे , लेकिन उसके विधान पर तो मानो साक्षात यमराज ही बैठा था ,, 1938 में वह एक लडाई में गया हुआ था और उसके दाएं हाथ पर एक ग्रेनेड फट गया ।

कैरोली हॉस्पिटल में भर्ती हो गया … सोचिए क्या बीत रही होगी उस पर … एक ऐसा चैंपियन जिसे हर कोई यह मानता था कि ये ओलंपिक में गोल्ड जरूर जीतेगा , ये एक जीनियस है …. जरा सोच कर देखिए … अरे बायां हाथ कट जाता तो कम से कम वो ये तो सोच लेता कि चलो जान बची है दाएं हाथ से आगे खेलेंगे । लेकिन वही दायां हाथ जिसके द्वारा वो निशाने लगाता था ,,, जिससे वह निरंतर अभ्यास करके दशकों तक परफेक्शन तक लाया था ,, वो दायां हाथ कट गया ।

जरा सोच कर देखिए कैसी ये मार्मिक दुर्दशा हो गई है उसकी ,,, यहां हमारे यहां तो रिजल्ट लेट हो जाते या एग्जाम टल जाए ,, बैक लग जाए ,, फेल हो जाते है ,, तो बच्चे दारू पीना शुरू कर देते है ,,,, सोच के देखो ।

और हा मित्रो अभी कहानी तो शुरू हुई है ।

एक्सीडेंट के 1 महीने तक कैरोली टेकेक्स अस्पताल में बेड पर रहता है ,,, हॉस्पिटल से बाहर निकलता है ,,, “रोते हुए नहीं ” …” डिप्रेशन में नहीं “…. और फिर एक बार दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ खड़ा होता है , इस विचार से कि ‘ गोल्ड तो जीतुगा ‘ …

और इस तरह कैरोली बाए हाथ से प्रेक्टिस शुरू कर देता है और …. इस प्रकार एक साल हो गए उसे प्रेक्टिस करते करते 1939 के हंगेरियन नैशनल शूटिंग गेम्स शुरू हो जाते है ,,, तो कैरोली भी पहुच गया ….कैरोली को देखकर दूसरे अन्य शूटर उसके साथ सहानुभूति दिखाने लगते है ……वो जानते थे कि कैरोली कितना बड़ा नाम था … जो भी उससे मिलता है , उसे सांत्वना देना शुरू कर देता ,,, जैसे होता नहीं कि हमारे आसपास कुछ गलत हो जाता है तो पड़ोसी या रिश्तेदार सांत्वना देने लगते है कि ..”कोई नही यार , लाइफ में जो हो गया , होगा , आगे बढ़ो ” वगेरह वगेरह ।

कैरोली उनसे कहता है , मुझे तुम लोगो से सांत्वना नही चाहिए ,,, ” मैदान में आओ मेरे साथ , मुकाबला करो मुझसे “

इस तरह मुकाबला होता है ,, और कैरोली नेशनल गेम्स में गोल्ड जीतता है ।

सोच के देखिए मित्रो …जो लोग कैरोली को सांत्वना दे रहे थे …. उसे बेचारा समझ रहे थे … उनको हराता है …लेकिन कहानी अभी खत्म नही होती …. अब 1940 ओलंपिक आने वाले होते है और कैरोली बिलकुल तैयार है कि इस बार गोल्ड मेडल जीतना ही है ।

लेकिन किस्मत एक बार फिर कैरोली को पटकती है ,, वर्ल्ड वार शुरू हो जाते है और ओलंपिक 1940 कैंसिल कर दिए जाते है ।

सोचिए जिस चीज के लिए ये बंदा 10-12 साल से तैयारी कर रहा था … वो कैसे आगे से आगे भागता जा रहा है । 1936 में एलाऊ नहीं किया …और 1940 में हाथ कटने के बाद भी उसी लेवल पर तैयार होता है लेकिन अब की बार ओलंपिक्स कैंसल हो जाते है ।

लेकिन अब भी वो निराश नही होता और अपनी प्रेक्टिस जारी रखता है ,,,

अब कैरोली फिर 1944 लंदन ओलंपिक में गोल्ड जितने के लिए सोच कर और भी कड़ी मेहनत करने लगता है ।

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था ,,, वर्ल्ड वार के कारण ही ओलंपिक गैम्स 1944 को रद्द कर दिया जाता है ।

अब एक बार फिर कैरोली तैयारी करता अगले ओलंपिक्स के लिए 1948 लंदन में होने वाले इस महाकुंभ में उसके अपोजिट में विश्व का सबसे बेहतरीन शूटिंग चैंपियन कार्लोस हैंडरिके भी आया होता है ।

कार्लोस को कैरोली मिलता है लंदन में उससे पूछता है ,,, अरे यहां कैसे आना हुआ ( हैंडरिके को उसके दुखद स्थिति के बारे में पता तो था ही )

कैरोली बोलता है ,,, ” यहां कुछ लर्निंग करने आया हु , सीखने आया हु , देखने आया हु कि कैसे ओलंपिक्स होते है “

और मित्रो मुकाबला होता है ,, कैरोली वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाते हुए गोल्ड जीतता है ,,, कार्लोस हैंडरिके देखता रह जाता है जो वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर बैठा हुआ था ।

अच्छा तो अभी भी कैरोली रुकता नही है ,, 1952 हेलसिकी ओलंपिक गेम्स होते है वहां दुबारा से गोल्ड जीतता है .. अगेन

आप सोच के देखिए कि ओलंपिक्स में एक एक खिलाड़ी का कैरियर ज्यादा से ज्यादा 10 से 15 साल तक होता है , क्योंकि नए बच्चे जो आते है वो नए तरीके से नए टेलेंट के साथ आते है और सुपीरियर बन कर आते है , तो उनसे मुकाबला करना आसान नही होता है ।

इसी लिए किसी ने कहा कि इंसान के जूनून के आगे एवरेस्ट भी छोटा है … कैरोली को पढ़ने पर आपको रामधारी सिंह दिनकर जी की यह पंक्तिया स्मरण आयेगी.

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